शुक्रवार, सितंबर 23, 2011

में क्या लिख पाउँगा

में क्या लिख पाउँगा
शब्दों में 
विदाई की वो रात 
माँ बेटी के दिल की वो बात  
माँ के आसुओ में छुपी 
ममता 
बिटिया के आखों के सपने  
भैया की छोटी 
वो नोक झोक 
वो लड़ना झगड़ना  
में क्या लिख पाउँगा
शब्दों में 
पिता की लाडली 
नन्ही सी गुडिया 
चली बसाने एक नया संसार 
में क्या लिख पाउँगा  
शब्दों में  
वो अनोखा सा अहसास 
वो हालत 
वो विदाई की वो रात 
में क्या लिख पाउँगा
शब्दों में

1 टिप्पणी:

  1. प्रिय विपिन, तुम्हारी यह कविता पढ़कर लगता है, तुम्हारी कविता में धीरे धीरे निखार आता जा रहा है और तुम परिपक्वता की ओर अग्रसर होते जा रहे हो…अच्छी लगी तुम्हारी यह कविता, बस, शब्दों को भी सही लिखने की आदत में शुमार करो… 'मैं' की जगह 'में' नहीं चलेगा, 'आँखों' को 'आखों','नन्हीं' को 'नन्ही', 'पाऊँगा' को 'पाउंगा' भी नहीं चलेगा… भाषागत अशुद्धियों से बचना होगा यदि साहित्य की राह पर चले हो… यह कह कर बचाव नहीं होगा कि कंप्यूटर पर हिन्दी लिखने का अभ्यास नहीं है… इसलिए ऐसा हो गया… कभी कभार एक दो शब्द अच्छे अच्छे लोगों से भी गलत हो जाते हैं, पर कभी कभी… हर बार नहीं अच्छे लगते… इस तरफ़ ध्यान दो…

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