में क्या लिख पाउँगा
शब्दों में
माँ बेटी के दिल की वो बात
माँ के आसुओ में छुपी
ममता
बिटिया के आखों के सपने
भैया की छोटी
वो नोक झोक
वो लड़ना झगड़ना
में क्या लिख पाउँगा
शब्दों में
पिता की लाडली
नन्ही सी गुडिया
चली बसाने एक नया संसार
में क्या लिख पाउँगा
शब्दों में
वो अनोखा सा अहसास
वो हालत
वो विदाई की वो रात
में क्या लिख पाउँगा
शब्दों में
प्रिय विपिन, तुम्हारी यह कविता पढ़कर लगता है, तुम्हारी कविता में धीरे धीरे निखार आता जा रहा है और तुम परिपक्वता की ओर अग्रसर होते जा रहे हो…अच्छी लगी तुम्हारी यह कविता, बस, शब्दों को भी सही लिखने की आदत में शुमार करो… 'मैं' की जगह 'में' नहीं चलेगा, 'आँखों' को 'आखों','नन्हीं' को 'नन्ही', 'पाऊँगा' को 'पाउंगा' भी नहीं चलेगा… भाषागत अशुद्धियों से बचना होगा यदि साहित्य की राह पर चले हो… यह कह कर बचाव नहीं होगा कि कंप्यूटर पर हिन्दी लिखने का अभ्यास नहीं है… इसलिए ऐसा हो गया… कभी कभार एक दो शब्द अच्छे अच्छे लोगों से भी गलत हो जाते हैं, पर कभी कभी… हर बार नहीं अच्छे लगते… इस तरफ़ ध्यान दो…
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